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बुंदेलखंड के 10 प्रमुख पर्यटन स्थल

रामघाट

उत्तर प्रदेश में बुंदेलखंड प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है जो यात्रियों को आकर्षित करता है। प्राचीन स्मारकों और संग्रहालयों से लेकर आसपास के खूबसूरत पर्यटन स्थलों तक बुंदेलखंड आदर्श पर्यटन स्थल लगता है। भारत में उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड में पर्यटक न केवल घूमने का शौक रखते हैं बल्कि स्मृति चिन्ह की खरीदारी भी करते हैं। उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड में खरीदारी करना वाकई एक रोमांचक मामला है। इस क्षेत्र में कई बाजार और बाजार हैं जो प्राचीन वस्तुएं, जिज्ञासा और हस्तशिल्प बेचते हैं।

बृहस्पति कुंड

बृहस्पति कुंड

हिंदू पुराणों के अनुसार कहा जाता है कि यहां पर देव गुरु बृहस्पति ने अपना एक आश्रम बना बनाया था। इसके बारे में एक दूसरी कहानी यह प्रचलित है कि यहां भगवान राम ने 14 वर्ष के वनवास के दौरान यहां पर निवास किया था। बृहस्पति कुंड को भारत का नियाग्रा फॉल्स भी कहते हैं। यह अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए बहुत प्रसिद्ध है। यह पन्ना जिले में स्थित है जो पन्ना से 37 किलोमीटर दूर चित्रकूट से 75 किलोमीटर और बांदा से 50 किलोमीटर की दूरी पर है। यहां से कालिंजर का किला मात्र 29 किलोमीटर दूर है। बृहस्पति कुंड की ऊंचाई लगभग 400 फीट है। यह पन्ना जिले के पहाड़ी खेड़ा गांव के पास स्थित है। बृहस्पति कुंड के तल तक जाने के लिए रास्ता बहुत ही  संकीर्ण और पहाड़ी है। जो अपने आप में एक साहसिक कार्य है। यहां पर  लोग कैंपिंग और ट्रैकिंग का भी आनंद लेने आते हैं। इस जगह की सुंदरता के कारण यहां लोग अपने परिवार के साथ पिकनिक मनाने और प्राकृतिक सुंदरता को निहारने के लिए आते हैं। बृहस्पति कुंड बाघिन नदी पर स्थित है। जिसका उद्गम पन्ना की पहाड़ियों से होता है। इस झरने की विशालता इतनी ज्यादा है कि झरने से पानी गिरने की आवाज बहुत दूर से सुनाई देती है।

शबरी जलप्रपात

शबरी जलप्रपात

शबरी जलप्रपात चित्रकूट में है। यह उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड में सबसे सुंदर स्थानों से  एक है। यहां घने जंगलों से होता हुआ पानी तीन समांतर धाराओं में 40 फीट की ऊंचाई से गिरता है। जो आगे चलकर एक तालाब में एकत्रित होता है, और फिर से यह पानी आगे जाकर 100 फीट की ऊंचाई से गिरता है। जिससे इसकी सुंदरता और भी मनमोहक लगती है। कहा जाता है कि पौराणिक काल में भगवान राम ने शबरी  माता से फल खाने के बाद  इसी स्थान पर स्नान किया था, और जिस कारण से इस स्थान का नाम शबरी कुंड पड़ा। शबरी जलप्रपात, बृहस्पति कुंड से 53 किलोमीटर दूर है। यह झरना चित्रकूट से 47 किलोमीटर बांदा से 108 किलोमीटर की दूरी पर है। जो चित्रकूट जिले के अंतर्गत डुड़ैला गांव में स्थित है। शबरी जलप्रपात घूमने का सबसे अच्छा समय वर्षा काल होता है। जिससे यहां अधिक पानी का बहाव देखने को मिलता है। जो जुलाई से सितंबर के बीच सबसे अच्छा माना जाता है। हालांकि यहां पर लोग दिसंबर तक आते हैं, परंतु सर्दियों में यहां पानी बहुत कम हो जाता है। जिसकी वजह से जलप्रपात अपनी शोभा खो देता है।

श्री परमहंस धाकुंडी आश्रम

श्री परमहंस धाकुंडी आश्रम

यह स्थान मानिकपुर सतना के पास एक सुंदर आध्यात्मिक स्थान है। यहां पर प्राकृतिक आध्यात्मिकता का अनुभव प्राप्त होता है।  इस आश्रम में एक छोटा जलाशय है। कहा जाता है कि इसी जलाशय में यक्ष और युधिष्ठिर के बीच संवाद हुआ था। जिसमें  युधिष्ठिर ने यक्ष के सारे प्रश्नों का उत्तर देकर अपने भाइयों को जीवित करवाया था। यह स्थान पर्यटकों को अपनी सुंदरता और शांति से अपनी और आकर्षित करता है।

रहिला सागर सूर्य मंदिर 

रहिला सागर सूर्य मंदिर

यह बुंदेलखंड के महोबा जिले में स्थित है। जो चंदेलों द्वारा बनवाया गया था।  यह भारतीय सांस्कृतिक विरासत का एक उत्तम उदाहरण है।  यह महोबा से 3 किलोमीटर दक्षिण में रहिलिया गांव के पास स्थित है।  इस मंदिर में चंदेल राजा सूर्य की उपासना किया करते थे। सूर्य की उपासना को ऊर्जा स्वास्थ्य और सकारात्मकता का स्रोत माना जाता है। इस मंदिर का निर्माण पांचवें चंदेल राजा रहीला देववर्मन ने करवाया था। जिसके नाम पर इस मंदिर का नाम रहिला मंदिर पड़ा। रहिला सागर सूर्य मंदिर की वास्तुकला प्रतिहार शैली से बनी हुई है। जिसमें ग्रेनाइट के पत्थर का उपयोग किया गया है, इन पत्थरों का उपयोग खजुराहो के मंदिरों में भी व्यापक रूप से देखा जा सकता है। यह मंदिर वास्तु शास्त्र के अनुसार तीन और से खुला हुआ है, तथा पश्चिम की तरफ से बंद है। इस मंदिर के सबसे निकट हवाई अड्डा खजुराहो, नई दिल्ली और लखनऊ है। खजुराहो एयरपोर्ट की मंदिर से दूरी 70 किलोमीटर यहां का निकटतम रेलवे स्टेशन महोबा है। रहिला सागर सूर्य मंदिर के अंदर एक झील, सूर्य मंदिर और एक सुंदर पार्क स्थित है। कहा जाता है कि इस कुंड का पानी कभी नहीं सूखता। यहाँ चंदेल शासक कुंड में स्नान करने के बाद ही सूर्य भगवान की पूजा किया करते थे।

कालिंजर का किला 

कालिंजर का किला

कालिंजर का किला बुंदेलखंड के बांदा जिले में स्थित है। यह खजुराहो से 97 किलोमीटर दूर विंध्य पर्वत पर स्थित है। यह दुर्ग अभेद्य और अपराजेय माना जाता रहा है। इस दुर्ग में कई प्राचीन मंदिर है, जिनमें से कुछ गुप्त काल के हैं। यहां एक शिव मंदिर है जिसके बारे में मान्यता है कि सागर मंथन से निकलने वाले विष को ग्रहण करने के बाद भगवान शंकर ने यहीं पर तपस्या की थी। कार्तिक पूर्णिमा के दिन यहां पर मेला लगता है। प्राचीन काल में यह दुर्ग चंदेल राजपूतों के अधीन और उसके बाद फिर सोलंकीयों के अधीन रहा। यहां पर महमूद गजनबी, कुतुबुद्दीन ऐबक, शेर शाह सूरी, हुमायूँ जैसे राजाओं ने भी आक्रमण किया। किंतु इसको भेद पाने में वह सक्षम नहीं हुए। इसी विजय अभियान के तहत शेरशाह सूरी को एक तोप का गोला लगने से उसकी मृत्यु हो गई थी। मुगल काल में अकबर इस दुर्ग पर कब्जा करने में सफल हो गया। इसके बाद यह राजा छत्रसाल बुंदेला के कब्जे में आया। जब उन्होंने मुगलो से लोहा लेकर उनको हरा दिया। ब्रिटिश काल में यहां पर नियंत्रण करने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ी थी। आजादी के बाद से यह एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक धरोहर के रूप में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अधीन है। कालिंजर का किला समुद्र तल से 1203 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। कालिंजर किले की ऊंचाई 60 मीटर है।  यह विंध्याचल पर्वत माला के अन्य पर्वत जैसे मईफा पर्वत, फतेहगंज पर्वत, पाथर कछार पर्वत, रसिन पर्वत, बृहस्पति कुंड पर्वत के बीच बना हुआ है।  इस किले में 20000 साल पुरानी शंख लिपि है। जिसमें रामायण काल में भगवान राम के कालिंजर आने का उल्लेख है। यह मध्यकाल का सर्वोत्तम दुर्ग माना जाता है। इस दुर्ग में गुप्त शैली, प्रतिहार शैली, पंचायतन नागर शैली आदि का उपयोग किया गया है। इसकी रचना अग्नि पुराण, बृहद संहिता और वास्तु शास्त्र के अनुसार हुई है। किले के बीच में कई मंदिर बने हुए हैं। इस दुर्ग में प्रवेश करने के लिए 7 दरवाजे हैं। जो अलग-अलग भवन निर्माण  शैलियों से अलंकृत हैं।  कहा जाता है कि यहां प्राचीन राजाओं के खजाने छुपे हुए हैं। जिनका रहस्य आज तक किसी को पता नहीं है। इस किले में बुड्ढा बुड्ढी नाम के दो ताल हैं। जिनका बहुत ही अधिक औषधीय महत्त्व है। यह किला खजुराहो से 105 किलोमीटर, चित्रकूट से 78 किलोमीटर, बाँदा से 62 किलोमीटर और इलाहाबाद से 205 किलोमीटर दूर स्थित है।

पांडव फॉल पन्ना

पांडव फॉल पन्ना

यह पन्ना से 14 किलोमीटर और खजुराहो से 34 किलोमीटर की दूरी पर पन्ना जिले में स्थित है। यह जलप्रपात केन नदी की सहायक नदी के द्वारा बनाया जाता है। इसकी ऊंचाई 30 मीटर है, जो एक दिल के आकार के कुंड में गिरता है। यह हरे-भरे जंगलों से घिरा हुआ शानदार स्थान है। यहां पर पांडव कालीन कुछ गुफाएं भी हैं। जिनके बारे में कहा जाता है कि पांडवों ने अपने वनवास के दौरान यहां निवास किया था।

पन्ना राष्ट्रीय उद्यान

पन्ना राष्ट्रीय उद्यान

यह बुंदेलखंड के पन्ना और छतरपुर जिलों के बीच स्थित है। 1981 में इसको वन्य जीव अभ्यारण घोषित किया गया था। जिसका क्षेत्रफल 542 वर्ग किलोमीटर है, वर्ष 2011 में इसको बायोस्फीयर रिजर्व के लिए नामित किया गया था। इस उद्यान में केन नदी मुख्य आकर्षण का केंद्र है। इस उद्यान की प्रमुख वनस्पतियां बांस, सागौन, बोसवेलिया हैं। इस अभयारण्य में कई दुर्लभ और लुप्तप्राय प्रजातियां को संरक्षित किया गया है।  यहां पाए जाने वाले जानवरों में से मुख्य  बाघ, तेंदुआ, चीतल, चिंकारा, नीलगाय, सांभर और भालू हैं।  यहां 200 से अधिक पक्षियों की प्रजातियां पाई जाती हैं। जिनमें लाल सिर वाला गिद्ध, हनी बुजार्ड और भारतीय गिद्ध मुख्य हैं। यह प्रोजेक्ट टाइगर के तहत संरक्षित क्षेत्र में आता है।

खजुराहो 

खजुराहो के मंदिर विश्व प्रसिद्ध हैं। जो अपनी प्राचीनता और कलाकृतियों के लिए सुप्रसिद्ध है। जो सुंदर, जटिल, विस्मय और आश्चर्य से भरपूर हैं।  यहां की खूबसूरती देखने के लिए लोग देश विदेश से आते हैं। चंदेल वंश के बनवाए मंदिरों को तीन समूहों में वर्गीकृत किया जा सकता है पूर्वी, पश्चिमी और दक्षिणी।

  • कन्दारिया महादेव मंदिर

कन्दारिया महादेव मंदिर
यह मंदिर शिव जी को समर्पित है। जिसका निर्माण चंदेल शासकों ने सन 99 ईसवी में करवाया था। यह नाम भगवान शिव के कंदर रूप के नाम पर पड़ा। कंदरिया महादेव का मंदिर ग्रेनाइट पत्थर की आधारशिला पर बना है। जिस पर रेतीले पत्थर की नक्काशी की गई है। मंदिर की दीवारें कमल पुष्प से सजी हुई हैं। मंदिर एक ऊंचे चबूतरे पर बना हुआ है। जिस पर अनेक सुंदर मूर्तियां सजी हुई है। इन मूर्तियों में मुख्य रूप से घोड़ों, योद्धाओं, शिकारियों मदारिया, संगीतज्ञ, नृतकों, भक्तों की मूर्तियां बनी हुई है। मंदिर के दूसरी तरफ की पट्टी में देवी-देवताओं सुर, सुंदरियों, मिथुनों, व्यालो और नागिनों की मूर्तियां बनी हुई है। यह मंदिर वास्तुकला का एक अद्भुत उदाहरण है। इस मंदिर के प्रत्येक भाग में सुंदर नक्काशी की गई है। इस मंदिर का प्रवेश द्वार पंचायतन शैली का बना हुआ है। जिस पर देवी-देवताओं, संगीतज्ञ, और पत्थर पर ध्वज की नक्काशी देखने योग्य है। मंदिर का प्रत्येक भाग एक दूसरे से जुड़ा हुआ है। परिक्रमा क्षेत्र में बाहरी दीवाल पर भी एक वृत्ताकार का मंच है। मंदिर का गर्भ ग्रह सर्वोच्च स्थान पर है। यहां पहुंचने के लिए चंद्रशिला युक्त सीढ़ियां बनी हुई हैं। गर्भ ग्रह के सात भाग बने हुए हैं।

  • मातंगेश्वर मंदिर

मातंगेश्वर मंदिर
मातंगेश्वर मंदिर चंदेल वंश के राजा चंद्र देव द्वारा नवीं शताब्दी में बनवाया गया था। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और खजुराहो के कुछ सक्रिय मंदिरों में से एक है। यह मंदिर अभी भी पूजा अर्चना के लिए सक्रिय रूप से प्रयोग किया जाता है। मंदिर में शिवलिंग की लंबाई 9 फुट है, और कहा जाता है कि यह हर साल शरद पूर्णिमा के दिन 1 इंच बढ़ जाता है। यहां के अधिकारी प्रत्येक वर्ष इसकी लंबाई मापते हैं। कहा जाता है कि यह मंदिर सिर्फ ऊपर ही नहीं नीचे की तरफ भी उतना ही बढ़ता है, जितना की ऊपर की तरफ। यह अद्भुत चमत्कार देखने के लिए लोग यहां दूर-दूर से आते हैं।  सावन के महीने में यहां का विशेष महत्व है। इस कारण यहां सावन के महीने में विशेष भीड़ होती है। इस मंदिर की दीवारों पर देवी देवताओं की सुंदर नक्काशी है। यह खजुराहो आने वाले लोगों के लिए विशेष पवित्र तीर्थ है। इस मंदिर में मध्य प्रदेश पर्यटन विभाग द्वारा लाइट और साउंड शो का भी आयोजन किया जाता है। जिसको हिंदी के साथ साथ अंग्रेजी भाषा में भी प्रस्तुत किया जाता है।

ओरछा

ओरछा की स्थापना सोलहवीं शताब्दी में राजपूत बुंदेला राजा रुद्र प्रताप ने की थी। ओरछा में वन्यजीव अभयारण्य, ओरछा का किला और यहां की मनोरम वास्तुकला, शीश महल आदि प्रमुख है। यहां बेतवा नदी में रिवर राफ्टिंग भी की जाती है।

  • ओरछा वन्यजीव अभयारण्य

ओरछा वन्यजीव अभयारण्य
ओरछा  वन्य जीव अभ्यारण  बुंदेलखंड के टीकमगढ़ जिले में स्थित है। जिसका क्षेत्रफल 45 वर्ग किलोमीटर है। यहां पर मुख्य रूप से चीतल और नीलगाय का संरक्षण किया जाता है। ओरछा वन्यजीव अभ्यारण  के पास में ही ओरछा पक्षी बिहार है। जो बेतवा और जामनी नदी के बीच में स्थित एक टापू पर बसा हुआ है।  यहां दुर्लभ किस्म के पौधों और पक्षियों का घर है। इसकी स्थापना 1994 में की गई थी। इसकी दूरी ओरछा के किले से 2 किलोमीटर है। यहां पर कुछ प्रजातियों के बाघ, लंगूर, तेंदुआ, भालू, सियार, बंदर तथा पक्षियों में कठफोड़वा, किंगफिशर, उल्लू, हंस, जंगली बटेर, कलहंस आदि हैं। यहां आने का सबसे अच्छा समय नवंबर से जून के बीच है। यहां पर रिवर राफ्टिंग, फिशिंग, ट्रैकिंग, वोटिंग, कैंपिंग, जंगल ट्रैकिंग और हाइकिंग जैसे खेलों के लिए आकर्षण का केंद्र है।

  • ओरछा किला

ओरछा किला
ओरछा के किले का निर्माण 16 वीं शताब्दी में राजा रूद्र प्रताप सिंह ने करवाया था।  यह मध्य प्रदेश बुंदेलखंड के मैं है। यह बेतवा और जामनी नदियों के बीच स्थित एक टापू के समान है। इस शहर में आने के लिए ग्रेनाइट के पत्थर का पुल बनाया गया है। यह झांसी से 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।  इस किले के अंदर सुंदर भवन और मंदिर भी है। यहां पर राज महल और राम मंदिर की स्थापना राजा मधुकर सिंह ने करवाई थी।  इस किले में राज महल राजा और रानियों के निवास के लिए तथा शीश महल राजा के लिए एक शाही आवास है। जिसे अब होटल में बदल दिया गया है। इसके अलावा राजा वीर देव द्वारा बनवाया गया जहांगीर महल जो मुगल सम्राट जहांगीर के सम्मान में बनवाया गया था तथा  फूल बाग यहाँ के दर्शनीय स्थल हैं।
  • चंदेरी किला

चंदेरी किला मध्य प्रदेश के अशोकनगर जिले में स्थित चंदेरी शहर में एक ऐतिहासिक स्मारक है। किला 15 वीं शताब्दी में बुंदेला राजपूतों द्वारा बनाया गया था और यह एक पहाड़ी के ऊपर स्थित है जो शहर के मनोरम दृश्य प्रस्तुत करता है। किले के परिसर में कई प्रवेश द्वार, महल और मंदिर शामिल हैं जो राजपूतों की स्थापत्य शैली को दर्शाते हैं। किले का वर्षों में कई बार जीर्णोद्धार और जीर्णोद्धार किया गया है और अब यह एक लोकप्रिय पर्यटक आकर्षण है। आगंतुक किले के परिसर के भीतर विभिन्न संरचनाओं का पता लगा सकते हैं और क्षेत्र के समृद्ध इतिहास और संस्कृति के बारे में जान सकते हैं।

चित्रकूट धाम 

यह चित्रकूट जिले में स्थित है, तथा मुख्य रूप से आध्यात्मिक और प्राकृतिक शांति के लिए प्रसिद्ध है। यह हिंदू धर्म में वर्णित कई प्रसिद्ध मंदिरों के लिए जाना जाता है। यह महान संत गोस्वामी तुलसीदास की तपोभूमि रही है। चित्रकूट धाम में भगवान राम ने अपने वनवास काल के 11 वर्ष बिताए थे। यहीं पर भरत राम जी से मिलने आए थे जिस जगह का नाम भरत मिलाप है। चित्रकूट के प्रमुख दर्शनीय स्थल रामघाट और आरोग्य धाम, गुप्त गोदावरी गुफा, कामदगिरि मंदिर, सती अनसूया आश्रम, हनुमान धारा मंदिर, स्फटिक शिला आदि हैं।

  • रामघाट चित्रकूट धाम

रामघाट
कहा जाता है कि यहां पर भगवान राम नित्य स्नान किया करते थे। इसी घाट पर भरत मिलाप मंदिर है। मंदाकिनी नदी के तट पर बने इस घाट पर धार्मिक अनुष्ठानों का विशेष महत्व है। यहां की शाम को होने वाली आरती बड़ी मनमोहक होती है।

  • गुप्त गोदावरी गुफा

गुप्त गोदावरी गुफा
यह चित्रकूट नगर से 18 किलोमीटर दूर है। यहां दो गुफाएं हैं, जिनका प्रवेश द्वार सकरा होने के कारण आसानी से नहीं घुसा जा सकता है। गुफा के अंत में एक छोटा सा तालाब है। जिससे गोदावरी नदी का उद्गम होता है। दूसरी गुफा में हमेशा पानी बहता रहता है। कहा जाता है कि इस गुफा में राम और लक्ष्मण ने दरबार लगाया था।

  • हनुमान धारा

हनुमान धारा 
यहां एक पहाड़ी के शिखर पर हनुमान जी की विशाल प्रतिमा है। मूर्ति के पास ही एक झरने से पानी गिरता है। कहा जाता है कि लंका दहन के बाद श्री राम जी ने उनके आराम के लिए यहां पर इस धारा को बनाया था। पहाड़ी के ऊपर सीता रसोई भी है, जहां से चित्रकूट अत्यंत सुंदर दिखता है।

  • कामदगिरि मंदिर

कामदगिरि मंदिर
कामदगिरि पर्वत को यहां के लोग बहुत ही पवित्र पर्वत मानते हैं। इसके धार्मिक महत्व को मानते हुए श्रद्धालु इस पर्वत की 5 किलोमीटर की परिक्रमा अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए करते हैं। यहां पर जंगलों से घिरे हुए अनेक मंदिर बने हुए हैं।

  • सती अनुसुइया आश्रम

सती अनुसुइया आश्रम
कहा जाता है कि यह सती अनुसुइया का निवास स्थान था। यहीं पर सती अनुसूया ने त्रिदेवों को बालक रूप में अपने यहां रखा था। यह स्फटिक शिला से 4 किलोमीटर दूर घने जंगलों के बीच स्थित है।

  • स्फटिक शिला

स्फटिक शिला
यह शिला मंदाकिनी नदी के किनारे स्थित है। कहा जाता है कि यहां पर माता सीता के पैरों के निशान बने हुए हैं। पुराणों के अनुसार यहां से भगवान राम और सीता जी चित्रकूट की सुंदरता को बैठकर निहारते थे।

दतिया

  •  दतिया पैलेस

दतिया शहर में स्थित, दतिया पैलेस एक ऐतिहासिक स्मारक है जिसे 17वीं शताब्दी में बनाया गया था। यह मुगल और राजपूत वास्तुकला के अपने अद्वितीय मिश्रण के लिए जाना जाता है। महल परिसर में जहाँगीर महल सहित कई इमारतें हैं, जो मुख्य आकर्षणों में से एक है। महल में कई कहानियां हैं, और वास्तुकला हिंदू और इस्लामी शैलियों का एक सुंदर संयोजन है। महल जटिल नक्काशी, सुंदर भित्तिचित्रों और सुंदर बगीचों से सुशोभित है। महल में कई पेंटिंग और कलाकृतियां भी हैं जो क्षेत्र के इतिहास और संस्कृति की झलक देती हैं।

झांसी

  • रानी महल

रानी महल झांसी शहर में स्थित एक खूबसूरत महल है। यह 18वीं शताब्दी में बनाया गया था और यह अपनी जटिल नक्काशी और सुंदर भित्तिचित्रों के लिए जाना जाता है। महल मूल रूप से झांसी की रानी के लिए बनाया गया था और अब यह एक लोकप्रिय पर्यटक आकर्षण है। महल में कई कहानियां हैं और सुंदर भित्ति चित्रों से सजाया गया है जो इस क्षेत्र के इतिहास और संस्कृति को दर्शाते हैं। आगंतुक महल के चारों ओर सुंदर बगीचे और फव्वारे भी देख सकते हैं।

  • झांसी का किला

झांसी का किला एक ऐतिहासिक मील का पत्थर है जिसे 17वीं शताब्दी में बनाया गया था। यह एक पहाड़ी के ऊपर स्थित है और आसपास के ग्रामीण इलाकों का मनोरम दृश्य प्रस्तुत करता है। किले के परिसर में रानी महल और शिव मंदिर सहित कई इमारतें हैं। किले ने 1857 के भारतीय विद्रोह में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, और आगंतुक रानी महल को देख सकते हैं, जहां विद्रोह के दौरान रानी लक्ष्मी बाई निवास करती थीं। किले में कई तोपें और अन्य हथियार भी हैं जिनका इस्तेमाल विद्रोह के दौरान किया गया था।

  • केन घड़ियाल अभयारण्य

केन घड़ियाल अभयारण्य एक वन्यजीव अभ्यारण्य है जो केन नदी के तट पर स्थित है। यह जानवरों की कई प्रजातियों का घर है, जिनमें घड़ियाल, मगरमच्छ और कछुए शामिल हैं। अभयारण्य अपने पक्षी जीवन के लिए भी जाना जाता है और पक्षियों को देखने के लिए एक लोकप्रिय स्थान है। अभयारण्य का पता लगाने और वन्यजीवों को करीब से देखने के लिए आगंतुक केन नदी पर नाव की सवारी कर सकते हैं। अभयारण्य में कई वॉचटावर भी हैं जहां से आगंतुक वन्य जीवन को देख सकते हैं।

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